Udaipur. नगर परिषद में आयुक्त के पद पर बने रहने की चाह उनकी कार्यनिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगा रही है। गत दिनों परिषद में ऐसे कई मामले हो गए जिसमें आरएएस अधिकारी पर प्रश्नचिह्न लग गए। पहले आदेश दे दिए। फिर जब हंगामा हुआ तो आदेश वापस भी ले लिए।
सभापति रजनी डांगी ने स्थारनांतरण के बाद आयुक्त को रिलीव कर अधिशासी अभियंता को चार्ज देने की बात कही लेकिन आयुक्त ने हाथों हाथ विभाग के उच्चाधिकारियों को जानकारी देकर शिविर चलने तक बने रहने के आदेश ले लिए। गत दिनों स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर नियुक्त होकर आए अधिकारी को नियुक्ति ही नहीं करने दी गई। फिर नियुक्ति देने के बाद उन्हें अधीनस्थ अधिकारी की कथित गाइडेंस में काम करने को कहा गया। प्रशासन शहरों के संग अभियान में आकस्मिक निरीक्षण पर पहुंचे जिला कलक्टकर विकास भाले ने भी आयुक्त को कड़ी डांट पिलाई। परिषद के जनप्रतिनिधियों का कहना है कि इन मामलों से परिषद की प्रतिष्ठा तो धूमिल हो ही रही है वहीं शहर का विकास ठप पड़ गया है।
जानकारों के अनुसार परिषद आयुक्त को शहर के गणमान्य नागरिकों ने जब अतिक्रमण सम्बान्धी जानकारियां दी तो उनका कहना था कि क्याय मेरे पास सिर्फ यही काम रह गया है? मेरे पास बहुत सारे काम हैं। क्या क्या करुं? इधर उनके स्थानांतरण के बावजूद पद नहीं छोड़ना भी प्रश्न खड़े करता है। हालांकि इसका बहाना वो प्रशासन शहरों के संग अभियान का हवाला देते हुए कहते हैं कि उन्हें विभाग की ओर से बने रहने को कहा गया है। स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर नियुक्त होकर आए मुकेश वर्मा को पद पर ज्वासइन ही नहीं करने दिया गया। फिर दबाव के बाद जब उन्हें नियुक्ति दी गई तो आयुक्त ने अपने अधीनस्थ के गाइडेंस में काम करने को कहा।
शहर में हो रहे अतिक्रमण की ओर भले ही नगर परिषद का ध्यान नहीं हो लेकिन अंदर ही अंदर परिषद सभापति और आयुक्तओ के आपसी झगड़ों ने जरूर आमजन का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है। शहर में अतिक्रमण हटाने का जिम्मा़ यूं तो नगर परिषद का है लेकिन अफसोस कि अकर्मण्य अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों की आपसी खींचतान के कारण अब तक कोई अतिक्रमण नहीं हट पाया। इसी कारण संभागीय आयुक्त डॉ. सुबोध अग्रवाल और जिला कलक्टर विकास भाले ने इसका जिम्मा लेते हुए पुलिस अधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा के सहयोग से उदयपुर को अतिक्रमणमुक्त करने का बीड़ा उठाया। यही कारण है कि जब-जब शहर में पुलिस मार्च हुआ तो व्यापारियों की हवाईयां उड़ गई और बाजार सुव्यवस्थित और साफ नजर आने लगे। लेकिन जैसे ही पुलिस कार्रवाई ठंडी पड़ी वैसे ही व्यापारी वापस उसी जगह आ जमा हुए। अतिक्रमण की बात लें तो उदयपुरवासियों को लगता है जैसे रिंग मास्टवर की जरूरत हो। जब तक हाथ में हंटर रहेगा तो शेर भी डर डरकर दबा रहेगा। ठीक वैसी ही हालत शहर के व्यापारियों की हो गई है। पुलिस मार्च रुका तो अतिक्रमण वापस सड़क पर आ गया। अगर अपने शहर को अच्छा बनाना है तो खुद को ही पहल करनी होगी।