जल प्रबंधन एवं झील प्रदूषण पर सेमीनार
Udaipur. जल की कमी एवं झीलों में प्रदूषण का कारण मानव का लालच व प्रकृति साथ अवांछनीय हस्तक्षेप है। यह विचार विद्या भवन सोसायटी के अध्यक्ष रियाज तहसीन ने विद्या भवन रिसर्च फोरम के उद्घाटन के अवसर पर आयोजित “जल व झील प्रबंधन” विषयक संगोष्ठी में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि झीलों के प्राकृतिक किनारे देसी व प्रवासी पक्षियों के प्राकृतिक आवास एवं प्रजनन के केन्द्र है जिन्हें बचाना अति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि झीलों का प्रदूषण मानवीय गतिविधियों के फलस्वरूप उपजे असंतुलन के कारण है। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर अरुण चतुर्वेदी ने कहा कि जल एवं गरीबी, जल एवं स्वास्थ्य तथा जल एवं विकास में एक गहरा संबंध है। इस दृष्टि से जल स्रोतों खासकर झीलों के सामाजिक, राजनितिक, आर्थिक, पर्यावरणीय समस्त आयामों पर समेकित शोध की आवश्यकता है।
मुख्य वक्ता अनिल मेहता ने जल स्त्रोतों व झीलों के प्रबंधन पर प्रस्तुतिकरण देते हुए कहा कि पानी की कमी वास्तविक नहीं है वरन् जल स्त्रोंतो के कुप्रबंधन एवं दुरपयोग के कारण है। मेहता ने आयड़ नदी के गंदे पानी से उपजाई जा रही सब्जियों को स्वास्थ्य के लिये खतरनाक बताया। उन्होंने कहा कि गंदे पानी में उपजी सब्जियां प्रदूषक तत्वों से भरपूर है। संगोष्ठी में हिमालय तहसीन ने बांधों के निचले भागों में जल उपलब्धता पर सवाल उठाते हुए नदियों में निरतंर बहाव की सुनिश्चितता का सुझाव दिया। राजनीतिक चिंतक डा. मनोज राजगुरू ने राष्ट्रीय नदी जोड़ योजना के राजनीतिक – सामाजिक एवं पर्यावरणीय पक्षियों पर प्रकाश डाला।
समाजशास्त्री डा. श्री राम आर्य एवं शिक्षाविद् सुषमा इंटोदिया ने कहा कि पूरा विश्व पश्चिमी और दक्षिणी राजस्थान से जल प्रबंधन सीख सकता है। आर्य व इण्टोदिया ने कहा कि जल एवं झीलों के प्रबंधन में समाज के हर तबके खासकर महिलाओं की प्रभावी सहभागिता आवश्यक है। प्रकाश सुदंरम् एवं शिवप्रकाश कुर्मी ने जल एवं झील प्रबंधन में संस्थागत व्यवस्था एवं पारदर्शी शासन व्यवस्था को आवश्यक बताया। उन्होंने एक प्रभावी, सहभागी एवं समावेशी झील विकास प्राधिकरण की आवश्यकता जताई। प्रारम्भ में फोरम के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए विद्या भवन रूरल इन्स्टीट्यूट के निदेशक डॉ. टी. पी. शर्मा ने कहा कि फोरम के माध्यम से जल एवं पर्यावरण के विभिन्न मुद्दों पर राष्ट्रीय संगोष्ठी होगी।