14 राज्यों के मृदा शिल्पकार भाग लेंगे
Udaipur. पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से शिल्पग्राम में 3 से 12 अक्टूबर तक ‘राष्ट्रीय मृणशिल्प कार्यशाला’ होगी जिसमें 14 राज्यों के मृदा शिल्पी भाग लेंगे एवं कृतियों का सृजन करेंगे।
केन्द्र निदेशक शैलेन्द्र दशोरा ने बताया कि मृण कला भारत के प्रत्येक राज्य में है तथा हर क्षेत्र की अपनी-अपनी शैली व तकनीक है। राजस्थान में जहां मोलेला की अपनी अलग शैली है तो पश्चिम बंगाल में बांकुड़ा की अलग शैली है जो वहां की स्थानीय माटी के अनुरूप होती है। मृदा शिल्पियों ने पारंपरिक मृदा पात्रों को बनाने के साथ ही उसमें अपने सृजन का रंग भी भरा है जो संग्रहालय, ड्राइंग रूम आदि की शोभा बढ़ाते हैं। ऐसे ही देश के 14 राज्यों के मृण शिल्पियों से अलंकृत एक कार्यशाला का आयोजन शिल्पग्राम में 3 से 12 अक्टूबर तक किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि कार्यशाला में कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, ओडीशा, झारखण्ड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, असम, मणिपुर, पश्चिम बंगाल और बिहार के 30 मृण शिल्पकार भाग लेंगे तथा अपने क्षेत्र की विशेषता रखने वाली कलाकृतियों का सृजन करेंगे। इसके लिये शिल्पकारों को जहाँ मोलेला से मिट्टी उपलब्ध करवाई जा रही है वहीं बाहर से आने वाले शिल्पकार अपने साथ भी अपने क्षेत्र की माटी भी लाएंगे जिन्हे एक साथ मिलाकर सामूहिक रूप में कलाकृतियों का निर्माण करेंगे। जिनमें भारत की समवेत छवि के दर्शन होंगे।
केन्द्र निदेशक दशोरा ने बताया कि यह पहला अवसर है जिसमें भारत के चौदह राज्यों के मृण शिल्पकार एक साथ बैठ कर शिल्पग्राम के नैसर्गिक वातावरण में मिल जुलकर काम करेंगे। कार्यशाला के दौरान तैयार कलाकृतियों को विशेष भट्टियों में पकाया जाएगा। कार्यशाला में बनी भारत के विभिन्न राज्यों की माटी कलाकृतियों को शिल्पग्राम में शुरू हो रहे टेराकोटा म्यूज़ियम में प्रदर्शित किया जावेगा।
विविध शिल्प शैलियों का प्रदर्शन- भारत के विभिन्न राज्यों से आए शिल्पकार पारंपरिक के साथ समसामयिक कलाकृतियों का भी निर्माण करेंगे। ये सभी मृण शिल्पकार आपस में तो अपनी तकनीकों और निर्माण शैलियों को एक दूसरे के साथ साझा करेंगे, साथ ही स्थानीय मृण शिल्पकारों से भी संवाद करेंगे। दस दिवसीय कार्यशाला के दौरान स्थानीय शैक्षणिक और कला संस्थाओं के विद्यार्थी, शिक्षक एवं कलाकार भी बाहर से आए मृणशिल्प कलाकारों का काम देख सकेंगे और उनसे संवाद कर सकेंगे। विद्यार्थियों के लिए इतनी सारी मृण शिल्प को एक साथ सक्रिय देखने का और अपना ज्ञान बढ़ाने का अवसर मिलेगा।