Udaipur. प्रशासनिक कार्यप्रणाली में अंग्रेजों के काल से चली आ रही दस्तावेज सत्यापन प्रणाली बंद होनी चाहिए क्योंकि अंग्रेज अधिकारियों ने यह प्रणाली आम भारतीयों को उनके सम्मुख गिड़गिड़ाने हेतु विकसित की थी, जो स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत में कदापि उचित नहीं है।
यह सुझाव मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के लोक प्रशासन विभाग द्वारा आयोजित ‘भारत में प्रशासनिक संस्कृति‘ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम दिन संभागियों की ओर आया। इनका मानना था कि इसी प्रकार उच्च अधिकारियों द्वारा चरित्र सत्यापन की व्यवस्था को भी बंद किया जाना चाहिए। कार्य को समयबद्ध रूप से पूरा करने के लिए प्रत्येक फाईल के निष्पादन के अधिकतम चरण निर्धारित होने चाहिए और प्रत्येक कार्य की समय सीमा भी निर्धारित कर देनी चाहिए जिससे कि आमजन को सरकारी कार्यालयों की नौकरशाही प्रणाली से निजात मिले।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि राजीव गांधी जनजाति विश्वविद्यालय के कुलपति टी. सी. डामोर ने पुलिस सेवा के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि पुलिस कार्मिक ड्यूटी के समय छुट्टी मनाता है और छुट्टी के समय ड्यूटी करता है क्योंकि भारतीय पुलिस व्यवस्था कार्य बोझ तथा अन्य कई दबावों से घिरी हुई है। यदि हम अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक और प्रतिबद्ध बनेंगे तो एक बेहतर प्रशासनिक संस्कृति विकसित हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस की परंपरागत कार्यप्रणाली व छवि में विगत दशक से भारी परिवर्तन आ चुका है, चाहे वह मानवाधिकारों के प्रति सामाजिक जागरुकता हो या सुशासन की बढ़ती हुई मजबूरियां।
इस अवसर पर कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो फरीदा शाह ने कहा कि प्रशासन में बुराइयों के साथ-साथ बहुत सारी अच्छाइयां भी विद्यमान है जिनकी ओर ध्यान देते हुए हमें उस पर गर्व भी करना चाहिए। प्रशासनिक संस्कृति के स्वरूप पर चली पैनल चर्चा में बोलते हुए प्रो. संजय लोढ़ा, अधिष्ठाता, स्नातकोत्तर अध्ययन ने कहा कि मतदान के प्रति महिलाओं का बढ़ता रूझान बहुत सारे राजनीतिक परिणामों को जन्म दे रहा है। प्रशासन का परिवेश उससे भारी मात्रा में परिवर्तित हो रहा है। साथ ही प्रशासनिक कार्यप्रणाली सामाजिक संस्कृति को नौकरशाहीनुमा बना रही है।
संगोष्ठी के निदेशक प्रो. एस. के. कटारिया, अध्यक्ष, लोक प्रशासन विभाग ने बताया कि इस सत्र में प्रो. आर.पी. जोशी, प्रो. सतीश पटेल (सुरत), मन्नालाल रावत (परिवहन अधिकारी), प्रो. एस.एल. शर्मा (जयपुर), डॉ. नवीन नन्दवाना, डॉ. खुशपाल गर्ग, डॉ. विशाल छाबड़ा, डॉ. नेमिचंद, डॉ. सौरभ कटारिया, डॉ. मन्नालाल मीणा, डॉ. किशन सुथार, डॉ. सुमित्रा शर्मा, डॉ. कंवराज सुथार और डॉ. रतन सुथार ने विभिन्न विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किए। आभार संगोष्ठी के निदेशक प्रो. एस. के. कटारिया ने व्यक्त किया।