वीबीआरआई के जुलॉजी विभाग की ओर से जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण पर सेमिनार
उदयपुर. पर्यावरण और वन मंत्रालय की पर्यावरण स्थिति संबंधित रिपोर्ट में भारत के सामने मौजूदा पांच प्रमुख चुनौतियां है। इसमें जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, जल सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा और शहरीकरण का प्रबंधन। यह जानकारी जोबनेर विवि के कुलपति प्रो. एनएस राठौड़ ने दी।
वे विद्याभवन रुरल इंस्टीट्यूट के जुलॉजी विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में थे। संगोष्ठी का विषय जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण रहा। प्रो.राठौड़ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की सबसे जटील चुनौतियों में से एक है। इसके प्रभाव से कोई देश अछूता नहीं है। जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों ये कोई देश अकेले नहीं निपट सकता है। आधुनिक हाईटैक युग में बढ़ते शहरीकरण व औद्यौगिकीकरण के कारण मानव ने पर्यावरण को ही नष्ट करना आरंभ कर दिया है। भोपाल गैस त्रासदी, ताजमहल पर अम्लीय वर्षा का प्रभाव, दिल्ली स्थित लाल किले का सुर्ख रंग भी दो रेलवे यार्डों से निकले धुएं के कारण फीका पडऩा, गंगा जैसी पवित्र नदियों का दूषित होना, वृक्षों की कटाई के कारण भूमि का बंजर होना आदि घटनाएं बढऩे लगी है।
आयोजन सचिव डॉ. सुषमा जैन ने बताया कि मुख्य अतिथि एवं सुविवि के कुलपति प्रो. आईवी त्रिवेदी ने बताया कि पृथ्वी का औसत तापमान 15 सैल्सियस है। यदि ग्रीन हाउस गैस ना हो तो पृथ्वी का तापमान -20 सैल्सियस हो जाएगा। पृ़थ्वी को गर्म रखने की वायुमंडल की यह क्षमता ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में वृद्धि हो जाए तो ये अल्ट्रावॉयलेंट किरणों को अत्यधिक मात्रा में अवशोषित कर लेगी। परिणामस्वरूप ग्रीनहाउस गैस प्रभाव बढ़ जाएगा। इससे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो जाएगी। तापमान में वृद्धि की यह स्थिति ग्लोबल वार्मिंग कहलाती है।
संगोष्ठी में रियाज तहसीन ने बताया कि खनन वैसे तो अल्पकालीन गतिविधि होती है, परंतु इसके प्रभाव दीर्घकालीन होते हैं। खनन से एक और जहां खनन कंपनी को लाभ होता है, लोगों को रोजगार प्राप्त होता है एवं सरकार को आय प्राप्त होती है। वहीं विशेष अतिथि प्रो. केके शर्मा ने कहा कि खान में आने गतिविधियां ऐसी होती है जो प्राकृतिक पचर्यावरण, सामाजिक व सांस्कृतिक घरोहर, पेड़ पौधे, जीव जंतु आदि पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। विशेषकर उस स्थिति में जबकि खनन मानव बसाव के अधिक निकट हो। खनन प्रक्रिया अपर्याप्त एवं समुचित ढंग से पूर्ण न की जाए। इस अवसर पर प्रो. महीप भटनागर, निदेशक डॉ. टीपी शर्मा, डॉ. एसडी शुक्ला, डॉ., अनिता जैन आदि ने भी विचार रखे। संगोष्ठी में विषय से जुड़े 65 पत्रों का वाचन किया गया।