उदयपुर। साहित्य संस्थान, जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय सभागार में महाराणा प्रताप की 476 वीं जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्यवक्ता के रूप उद्बोधन देते हुए प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता प्रो. नरपतसिंह राठौड़ ने कहा कि प्रताप ने विपरित परिस्थियों में संघर्ष करते हुए उच्च कोटि के मानव मूल्यों को बनाए रखने तथा सर्व समाज को साथ लेकर चले।
उन्होंने कहा कि मेवाड़ में पर्यावरण के प्रति सजगता इस कदर थी की मुहुए और आम के पेड़ प्रताप के काल में तथा मध्यकाल में दहेज में दिये जाते थे तथा गिरवी रखे जाते थे। उन्होंने यह भी कहा कि मेवाड़ की जल व्यवस्था तथा नदियों को आपस में जोड़ कर सिचाई करना विश्व का प्राचीनतम उदाहरण है। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि प्रताप जैसे महापुरुष को निरन्तर याद किया जाना चाहिये ताकि हमारे जीवन मूल्य बने रहें। उन्होंने अपेक्षा की कि साहित्य संस्थान में प्रति वर्ष चार या पांच गोष्ठियों का आयोजन होना चाहिये। विशिष्टक अतिथि डॉ. देव कोठारी ने कहा कि प्रताप से संबंधित अनेक स्थल अभी भी अज्ञात है। उनका सर्वेक्षण एवं संरक्षण करना आवश्यक है। उन्होंने राज्य सरकार के पुरात्तत्व विभाग से आह्वान किया कि प्रताप से जुड़े स्थलों का तुरन्त सर्वेक्षण एवं संरक्षण किया जाये। संगोष्ठी में डॉ. ललित पाण्डेय ने कहा कि चावंड को प्रताप द्वारा राजधानी इसलिये बनाया गया क्योंकि वहा पर्याप्त जल व्यवस्था तथा प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध थे। स्वागत उद्बोधन में संस्थान निदेशक डॉ. जीवनसिंह खरकवाल ने कहा कि हमें प्रताप के जीवन से प्रेरणा लेकर यह सिखना चाहिये कि हमारा नैतिक पतन ना हो। संगोष्ठी का संचालन करते हुए डॉ. कुलशेखर व्यास ने कहा कि महाराणा प्रताप एक योद्धा दृढ़ निश्चयी व्यक्ति ही नहीं थे। बल्कि मानव समाज की स्वतंत्रता के चिन्तक थे। साथ ही डॉ. महेश आमेटा कहा कि प्रताप के जीवन से जुड़ी गाथाओं को अनिवार्य रूप सभी विद्यालयों में सुचारू रूप से लिखा जाये। ताकि नवपीढ़ी को प्रताप के जीवन के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हो। धन्यवाद डॉ. कृष्णपाल सिंह देवड़ा ने दिया। साथ संगोष्ठी में शहर के इतिहासकार डॉ. राजशेखर व्यास, डॉ. राजेन्द्रनाथ पुरोहित, डॉ. मोहब्बतसिंह राठौड़, प्रताप सिंह तलावता, पुरुषोत्तम पल्लव, डॉ. विष्णुप्रकाश माली के साथ संस्थान के छात्रों आदि ने भाग लिया।