जनमेदिनी डूबी भक्ति रस में
मानस रामदेव पीर के छठे दिन उमड़ा जनसैलाब
रामदेवरा। ज्ञान चुप रहता है और भक्ति भगवत में लीन रहती है। सांसारिक जीवन में सबसे बडा पदार्थ भक्ति है। जहां भक्ति है वहां जग है। भक्ति बैकुण्ठ में नही बल्कि पृथ्वी पर है क्योंकि भक्ति पृथ्वी की बेटी है। यह उद्गार राश्ट्रीय संत मुरारी बापू ने रामदेवरा में आयोजित रामकथा के छठे दिन गुरूवार को व्यासपीठ से अपने आषीर्वचन प्रदान करते हुए व्यक्त किये।
बापू ने भक्ति के बारें में विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि भगवान को भक्ति के भवन में ठहराया जा सकता है। जहां भक्ति होती है वह भवन ही सुन्दर होता है, वहां भगवान का वास होता है। भगवत चर्चा का इंसान को सदुपयोग करना चाहिए। किसी परम का स्पर्श होते ही बुद्धि शुद्ध हो जाती है। परमात्मा को छोडकर परमात्मा में खो जाना यह सदगुरू का ही प्रभाव है। बापू ने रामकथा के दौरान प्रभु राम के नगर भ्रमण के प्रसंगों को दर्शाया।
रामदेव पीर आज की आवश्य कता : मुरारी बापू ने रामकथा के छठे दिन मानस रामदेव पीर के वृतांत को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बाबा क्रांतिकारी, शांतिकारी एवं भ्रांतिहारी अवतारी थे। वो आज के युग की आवष्यकता है। जो दूसरों की पीर को समझे वही पीर है। सत्य, प्रेम और करूणा का प्रचार नही करना पडता है। पीर कोई भी हो लेकिन उसके मन में षिव का संकल्प होना जरूरी हैं। कुपात्र और अपात्र को पात्रता दे वही पीर कहलाता है। जो षाष्वत रहता है उसके मूल में सच्चाई व पिराई होती है। परम तत्व अवतरित होते है तो उसके साथ अन्य चेतनायें भी आती है जो किसी ना किसी रूप में उस परम तत्व से जुडी हुई रहती है। हरेक देषकाल में कोई ना कोई परम तत्व हुआ है। जीवन में पात्र का नही पात्रता का मूल्य होता है। अहंकार इंसान की पात्रता को कमजोर करता है। स्वर्ग उपाधियों से एवं रामदेवरा समाधियों से भरा है। धर्म प्रीत एवं साधना को स्वयं उन व्यक्तियों के पास चला जाना चाहिए जिनके पास इनका अभाव है। जीवन के भय से भाग चुके लोगों को सचेत करना मृतक व्यक्ति को जीवित करने के समान है।
अब तो बादल जाने या वसुन्धरा : बीज तो मैने बोया है, अब बादल या वसुन्धरा (पृथ्वी) जाने। साई मकरंद दवे की उक्त पंक्तियों का उल्लेख करते हुए मुरारी बापू ने राजस्थान को हरा भरा करने के लिए नव वन क्षेत्र विकसित करने का राजस्थानवासियों एवं सरकार से आह्वान किया है। उन्होने नव वन क्षेत्र के रूप में बाबा रामदेव पीर वन, श्रीनाथद्वारा वन, महादेव (एकलिंगजी) वन क्षेत्र, मीरा वन, महाराणा प्रताप वन, भामाषाह वन, साहित्यकारों के नाम पर कवि मनीशी वन, षील, संस्कार एवं सतीत्व वन तथा नीम (निम्बार्क) वन को विकसित करने का आह्वान किया तथा पर्यावरण के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ाने के लिए बापू ने स्वयं संकल्प लिया कि वे स्वयं रामदेवरा में पांच पौधे लगाकर जायेंगे।
राष्ट्रिनीति में तीन मत जरूरी : बापू ने कहा कि राष्ट्रानीति में तीन मतों का षुमार होना जरूरी है। पहला मत साधु या आचार्य का होता है जिसमें तीन षील जरूरी है। वह निर्भय हो, निष्पाक्ष हो तथा निरवैर हो। बापू ने दूसरा मत लोकमत तथा तीसरा मत मूल ग्रंथों एवं वेदों के निचोड़ को बताया।
गुजरात एवं राजस्थान का अभिन्न सम्बन्ध : बापू ने कहा कि राजस्थान एवं गुजरात का गहरा नाता है। राजस्थान का सम्बन्ध मीरा, महाराणा प्रताप और बाबा रामदेव से है तो द्वारिकाधीष, चेतक और बाबा रामदेव के अवतार की प्रक्रिया गुजरात से है। राजस्थान ने महाराणा प्रताप जैसा सोना तथा मीरा जैसा रतन दिया है। वही गुजरात में गौ लोक और वैकुण्ठ से कृष्ण ब्रज आये तथा ब्रज से सौराश्ट्र होकर बाबा रामदेव के रूप में रामदेवरा आये। बापू ने कहा कि विश्वध में मंदिर कही भी बने लेकिन ज्यादातर उसकी मूर्तियां राजस्थान की खदानों से बनी हुई है। बाबा रामदेव अवतार के फूल में यहां खिलें लेकिन उनकी खुषबु मक्का तक रही है। मरूधरा वैसें तो बहुत खुष है लेकिन मीरा के आंसू ने इस धरा को सींचा है।
रामकथा के छठे दिन कथा स्थल पर भाजपा के राश्ट्रीय महासचिव कैलाष विजयवर्गीय, राजस्थान सरकार के खान, पर्यावरण एवं वन मंत्री राजकुमार रिणवा के साथ ही कथा संयोजक मदन पालीवाल, प्रकाश पुरोहित, रविन्द्र जोशी, रूपेष व्यास, विकास पुरोहित सहित कई गणमान्य अतिथियों ने व्यासपीठ पर पुश्प अर्पित किये तथा कथा श्रवण का लाभ लिया।
आकाशवाणी कलाकार चौहान ने बांधा समां : रामकथा के दौरान पाण्डाल में मौजूद मूलतः फलौदी के रहने वाले आकाषवाणी जोधपुर के कलाकार ओमप्रकाश चौहान ने बापू के कहने पर बाबा रामदेव का भजन रूणिचे रा राजा अजमाल जी रा बेटा सुनाकर संपूर्ण पाण्डाल को भक्तिमय बना दिया।