छात्रसंघ चुनाव में बल्ले बल्ले
Udaipur. एक बार फिर आ गया है मौसम छात्रों के आनंद का। छात्रसंघ चुनाव 24 अगस्त को होने हैं। अभी तो छात्र-छात्राओं के मौज ही मौज है। कभी कोई पिक्चर दिखाने ले जा रहा है तो कभी कोई नाश्ता करा रहा है। अभी के हाल कुछ ऐसे हैं कि छात्र-छात्राएं भगवान हो गए हैं। कुछ कॉलेजों में अभी अधिकृत पैनल ही घोषित हो रहे हैं।
जैसे जैसे चुनाव का समय नजदीक आएगा, छात्रों की मौज में उतनी ही अधिक वृद्धि होगी। उन्हें घुमाने-फिराने, होटलों में खाने-पीने आदि का खर्च भी प्रत्याशी ही वहन करते हैं। क्या विश्वविद्यालय प्रबंधन लिंग्दोह समिति की सिफारिशों को ईमानदारी से लागू कर पाए हैं। यह सोचने का विषय है। क्या वाकई में सिफारिशें इतनी ईमानदारी से लागू हो पाती हैं।
शनिवार को कॉलेजों में जनसंपर्क का माहौल रहा। प्रत्याशी मतदाताओं को नाम बता बताकर याद करवा रहे थे। किसी को पिक्चर देखने का शौक नहीं हो तो भी देखने जा रहा है। ऐसे में झगड़े होना आम बात है। कल साइंस कॉलेज में हुए झगडे़ में भी ऐसी ही कुछ बात दिखी। सिर्फ पिक्चर देखने ले जाने को लेकर सीएसएस और एबीवीपी के पदाधिकारी आपस में झगड़ पडे़। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का खेल खूनी खेल में बदल गया। परिणिति यह कि पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ गया।
बताते हैं कि शुक्रवार सुबह साइंस कॉलेज में एबीवीपी के पंकज बोराणा, प्रत्याशी जितेन्द्रसिंह शक्तावत आदि पीवीआर में फिल्म दिखाने के लिए छात्र-छात्राओं को बस में बिठा रहे थे। तभी वहां छात्र संघर्ष समिति के सूर्यप्रकाश सुहालका, प्रत्या शी अमित पालीवाल, दिलीप जोशी आदि पहुंच गए और उन्हों ने उनके समर्थक छात्र बताते हुए ऐसा करने से रोका। इस पर बहस हुई और झड़प हो गई।
दोनों गुटों में संघर्ष के बाद राजनीतिक दलों के नेता भी वहां पहुंच गए। भाजयुमो के जिलाध्यक्ष जिनेन्द्र शास्त्री, प्रवीणसिंह आसोलिया आदि वहां पहुंचे और छात्रों से मारपीट की। इस दौरान वहां पुलिस भी पहुंच गई और कॉलेज परिसर छावनी में बदल गया। सीएसएस के प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि पहले ही हमने यही कहा था कि कॉलेज परिसर में राजनीतिक दलों का प्रवेश निषिद्ध हो। घटना के बाद सीएसएस के छात्र भूपालपुरा थाने पहुंचे। इससे पूर्व वहां शास्त्री , जयेश चंपावत, गजपालसिंह आदि मौजूद थे। वहां दोनों गुटों में रोष फैल गया। डिप्टीक दयानंद सारण ने छात्रों को समझाने का प्रयास किया लेकिन कोई सुनने-समझने को तैयार नहीं था। आधे घंटे की मशक्कलत के बाद सारण ने दोनों गुटों को अलग अलग दिशाओं में रवाना किया।