मक्का उन्नयन पर कार्यशाला 21 से
उदयपुर। खाद्यान्न फसलों की रानी के नाम से विश्वह भर में प्रसिद्ध मक्काा की उत्पाोदन क्षमता खाद्यान्न फसलों में सबसे अधिक है। मीठी मक्का, फूली की मक्का एवं शिशु मक्का की खेती कर किसान आर्थिक रूप से सामर्थ्य हो सकता है एवं अपने जानवरों को उच्च गुणवत्ता वाला हरा चारा भी उपलब्ध करा सकता है।
ऐसे ही कुछ मुद्दों पर चर्चा की जाएगी 21 से 23 अप्रेल तक होने वाली कार्यशाला में जो महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के तत्वावधान में हो रही है। इसमें देश भर के करीब डेढ़ सौ विद्वान भाग लेंगे। शहरों के आसपास काफी मात्रा में सामान्य प्रचलित देशी किस्मों की अगेती बुवाई कर उसका उपयोग हरे भुट्टों एवं हरे चारे के लिए किया जाता है। वर्तमान में वैज्ञानिकों द्वारा मीठी मक्का की कई प्रजातियाँ विकसित करने से मीठी मक्का की खेती को काफी पहचान मिल चुकी है। इन किस्मों के भुट्टों के दाने मीठे, मलाईदार, मुलायम एवं खाने पर छिलका रहित मालूम होते हैं। मीठी मक्का के भुट्टे बाजार में काफी महंगे बिकते हैं अतः किसान इसकी खेती कर अधिक मुनाफा एवं पौष्टिक हरा चारा प्राप्त कर सकता है।
राजस्थान में विशेष रूप से मेवाड़ में मक्का एक महत्वपूर्ण फसल है एवं आदिवासी एवं गरीब किसान का प्रमुख भोजन है। वर्तमान में 24 प्रतिशत मक्का का उपयोग मानव आहार, 44 प्रतिशत कुक्कुट आहार, 16 प्रतिशत पशु आहार, 14 प्रतिशत स्टार्च, 1 प्रतिशत एल्कोहल एवं 1 प्रतिशत बीज के रूप में होता है। राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों में मक्का उत्पादन के नये आयाम खड़े किये हैं। कम उत्पादकता के प्रमुख कारणों में देशी किस्मों के प्रति लगाव, 80 प्रतिशत मक्का की बुवाई असिंचित क्षेत्रों में होना, वर्षा की अपर्याप्तता व असमान वितरण, अनियमितता, उन्नत प्रबंधन की जानकारी न होना इत्यादि है। इन सब की जानकारी कर, उनके निदान को किसान द्वारा पूर्ण रूप से अपनाने पर किसान व्यक्तिगत लाभ के साथ-साथ राज्य की मक्का उत्पादकता को राष्ट्रीय उत्पादकता के समतुल्य लाया जा सकता है। वर्तमान में गुणवत्ता मक्का की खेती को प्राथमिकता दी जा रही है क्योंकि इसके प्रोटीन में लाइसिन और ट्रिप्टोफेन संतुलित एवं सामान्य मक्का से अधिक होता है। जनजाति क्षेत्रों में गुणवत्ता मक्का का प्रयोग कर कुपोषण से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है। पशु आहार में भी गुणवत्ता मक्का का उपयोग लाभकारी होता है। इसके अतिरिक्त पौष्टिक चारा भी प्राप्त होता है।