णमोकार महामंत्र जाप्यानुष्ठान का चौथा दिन
उदयपुर। सभा आमतौर पर तीन प्रकार की होती है। जहां एक बोले और सभी उदासीन होकर सुने उसे शोकसभा कहते हैं। जहां सब बोले और सुने कोई नहीं, उसे विधानसभा कहते है, और जहां सन्त बोले और सभी सुने उसे धर्मसभा कहते है।
ये विचार आचार्य शान्तिसागर ने नगर निगम प्रांगण में आयोजित णमोकार जाप्यानुष्ठान के चौथे दिन उपस्थित सैकड़ों जाप्यार्थियों सहित श्रावकों के समक्ष धर्मसभा में व्यक्त किये। आचार्य ने कहा कि अपने दिल में मन में नफरत को जगह मत दो, क्योंकि नफरत वाले दिलों में मन में नारायण का वास नहीं होता है। आचार्यश्री ने प्रभु का आव्हान किया कि हे प्रभु आप हमेशा मन्दिर में ही रहते हो, कभी मेरे घर पर भी आया करो। प्रभु ने कहा मैं आपके घर पर जरूर आऊंगा, कभी तुम भी तो मेरे दर पर आया करो।
आचार्यश्री ने कहा कि जीवन में दुखों का, तकलीफो का, परेशानियों का आना तो पार्ट ऑफ लाईफ है, लेकिन इन सभी में से हंसते-मुस्कुराते निकल जाना ‘ऑर्ट ऑफ लाईफ’ है। आचार्यश्री ने सभी का आव्हान करते हुए कहा कि हमेशा याद रखना किसी की मजाक और दूसरों का पैसा उड़ानेे पहले सौ बार सोचना चाहिए। यह काम सोच-समझ कर ही करना चाहिए।
आचार्य ने कहा कि अच्छे लोगों की एक खूबी होती है, उन्हें याद रखना नहीं पड़ता है वह खुद ही याद आ जाते हैं। श्रावक प्रकाश सिंघवी ने बताया कि धर्मसभा के पुण्यार्जकों में मुख्य रूप से सेठ शान्तिलाल नागदा, अरविन्द चित्तौड़ा, सुमतिलाल दुदावत, चन्दनमल छाप्या, जनकराज सोनी आदि रहे। रविवार को चौथे दिन 751 जाप्यार्थियों सहित सैकड़ों श्रद्धालुओं ने धर्मसभा में भक्ति-भाव का लाभ लिया।