उदयपुर। मनुष्य के व्यक्तित्व के भाव पक्ष व तर्क पक्ष में निरन्तर आदान-प्रदान चलता रहता है। किसी एक पक्ष की प्रधानता न हो व सन्तुलन बना रह सके इसके लिए आवश्यनक है कि मनुष्य चिन्तन के लिए समय निकाले। अकेले पैदल यात्रा इस चिन्तन के लिए समय जुटाने का एक अच्छा साधन है।
ये विचार बलवंत पारेख सेन्टर फॉर जनरल सिमेन्टिक्स एण्ड अदर ह्युमन साइंसेज, बड़ोदा के निदेशक प्रो. प्रफुल्लचन्द्र कार ने जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के अंग्रेजी विभाग द्वारा टाइम बाइंन्डिग एण्ड सोशल रेस्पोन्सबिलिटी विषयक आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि नीत्शेन ने ’एक्सटर्नल रिकरेन्स’ का विचार यात्राओं में ही विकसित किया, जब वो एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी की चोटी निहारते पूरी श्रंखला को अनुभव कर रहे थे। प्रो. कार ने कहा कि यथार्थ की पूर्ण अनुभूति संभव नहीं है। हम यथार्थ के किसी एक पक्ष को ही देख पाते हैं। ’’थेलेमो-कोर्टिकल इंटीग्रेषन एण्ड एक्सटेंशनल डिवाईसेज विषयक व्याख्यान में उन्होंने कहा कि मौन का भाषा में परिवर्तित करते समय पूर्ण यथार्थ है। अभिव्यक्त कर पाना एक कठिन चुनौती है क्योंकि जो यथार्थ को उतना ही समझ में आ जाए यह संभव नहीं। हम यथार्थ को उतना ही समझ पाते हैं जितना हमारी इन्द्रियॉं उसे अनुभव कर पाती है।
सेन्टर की एकेडेमिक एसोसिएट बिन्नी बी.एस. ने पावर पाइंट प्रजेन्टेशन के माध्यम से ’स्ट्रक्चरल डिफरेन्षियल एण्ड द कांषसनेस आफ एब्स्ट्रेक्टिंग’’ विषय पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि किसी भी परिघटना, व्यक्ति या विचार को स्वीकार करने से पूर्व हमें उसके प्रति एक स्वच्छ संशयात्म क दृष्टि रखनी चाहिये। अकादमिक प्लानिंग निदेशक डॉ. जीएम मेहता ने बताया कि बुधवार को संभागियों को पांच समूहों में विभाजित कर उन्हें टास्क दी गई। मेहजबीन सादड़ीवाला ने संभागियों को पाठ्यक्रम सामग्री वितरित कर उन्हें अपनी प्रस्तुतियॉं तैयार करने के बारे में प्रशिक्षण दिया। दोपहर बाद एक पैनल डिस्कशन रखा गया जिसमें प्रो. पीसी कार, प्रो. जी.एम.मेहता, बिन्नी बी.एस, डॉ. शारदा भट्ट, प्रो. सी.वी.भट्ट, डॉ. जयश्री सिंह, प्रो हेमेन्द्र चण्डालिया, डॉ. ऋचा माथुर, प्रो. मुक्ता शर्मा आदि ने भाग लिया। परिचर्चा में सोनिका गुर्जर, ऋतम्भरा त्रिवेदी, मेघना माथुर आदि ने भाग लिया।