शिल्पग्राम में मिनी ऑक्टेव में दिखे पूर्वोत्तर की लोक संस्कृति के रंग
उदयपुर। शिल्पग्राम उत्सव में गुरूवार को मुख्य रंगमंच ‘कलांगन’ पर केरल के बैम्बू बैण्ड ने दर्शकों में रोमांच भरा वहीं पूर्वोत्तर राज्यों से आए कलाकारों ने चित्ताकर्षक प्रस्तुतियों से दर्शकों को संस्कृति से रूबरू करवाया।
पांचवे दिन की शाम कला रसिकों के लिये एक अनूठा अनुभव रही जब दक्षिण केरल के कलाकारों ने बाँस से सृजित वाद्य यंत्रों पर मधुर तान छेड़ कर दर्शकों के कानों में स्वर माधुर्य का संचरण किया। बैण्ड में फूंक वाद्य, ताल वाद्य व अन्य संगत वाद्य बांस के बने थे जिस पर थिरकती अंगुलियों ने दर्शकों को लोक संस्कृति में छिपे आविष्कार की प्रवृत्ति का श्रेष्ठ प्रदर्शन किया। प्रस्तुति में कलाकारों ने फिल्म ‘हीरो’ से लोक प्रिय धुन बजा कर दर्शकों की दाद बटोरी।
पूर्वोत्तर राज्य अरूणाचल प्रदेश से आई कलाकारों ने नृत्य जूजू जाजा में वहां की कृषि प्रधान संस्कृति का दर्शाया। फसल कटाई के बाद महिलाए अनाज को साफ करतेहुए खुशियाँ मनाते हुए गीत गाती है। इसके बाद असम का बोर्दोई शिकला नृत्य में हवा में बालों को लहराती तलवार के साथ नृत्य करती हुई महिलाओं ने अपने शौर्य को दर्शाया। कार्यक्रम में मणिपुर का स्टिक डांस में ताल के साथ स्टिक (वुडन बैटन ) संयोजन व संतुलन दर्शकों के लिये रोमांचकारी बन सका। मेघालय की गारों जाति का वांग्ला कार्यक्रम की मोहक प्रस्तुति थी। कार्यक्रम में सिंगी छम (स्नो लॉयन) ने दर्शकों में उन्माद सा भर दिया। पर्वतीय प्रदेश सिक्किम की संस्कृति का प्रतीक व रक्षक स्नो लॉयन नेे अरावली की वादियों में अपना रंग जमाया। पांचवे दिन की सांझ में ही मिजोरम का सोलकिया, गुजरात का राठवा नृत्य, मणिपुर का पुंग चोलम, सिक्किम का घंटू, नागालैण्ड का खुपी लीली नृत्य उल्लेखनीय प्रस्तुतियां थी। संचालन हिमानी जोशी, दुर्गेश चांदवानी व ब्रज मोहन तूफान ने किया।
क्रिसमस के अवकाश के चलते उत्सव के पांचवे दिन दोपहर से ही बड़ी संख्या में लोगों का रेला सा शिल्पग्राम पहुंचना प्रारम्भ हो गया तथा शाम ढलते-ढलते शिल्पग्राम के जहां नजर दौड़ाओं लोगों की भीड़ नजर आई। हाट बाजार के वस्त्र संसार में लोगों ने खरीददारी की इनमें चिकनकारी के परिधान, कशीदा युक्त कुर्ते, भरथकाम का ड्रेस मटिरियल, बैड शीट्स, कवर, धातुधाम में कलात्मक गुलदस्ते, हुक्का, चूड़ी वाला ग्रामोफोन, ढाल तलवार, पीतल के दीपक, रिंग व स्प्रिंग की बनी साइकिल के की रिंग्स, बांस की बनी कला कृतियाँ, याक होर्न के बने कलात्मक चेहरे, सिरोही आबू रोड़ के बने मिट्टी के कलात्मक मुख मण्डल, गोवा के सी शैल व नारियल के खोल की बनी कला कृतियाँ, मृण कुंज में खुर्जा पॉटरी के कप प्लेट्स कलात्मक व रंग बिरंगे कॉफी मग, भरतपुर की पॉटरी, बाड़मेर की पॉटरी, दर्पण बाजार में वूलन कारपेट, इत्र, ड्रेस मेटिरियल आदि शिल्प थड़ों पर खरीददारी व मोलभाव करने वालों का तांता लगा रहा। शिल्पग्राम में ही लोगों ने लोक प्रस्तुतियों का निहारा व बंजारा फूड जोन, वस्त्र संसार फूड जोन, कला निवास फूड जोन में विभिन्न खान पान का रसास्वादन किया।
निरोना की घंटियों से निकलता सप्त स्वर : कच्छ जिले के निरोना गांव से आये धातु शिल्पी की बनी कॉपर की घंटियां हाट बाजार में भ्रमण के दौरान कानों में मिठास घोलती हैं। धातु धाम में बेठे शिल्पकार आगंतुकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिये रह-रह कर घंटियों पर टंकार करते रहते हैं ताकि उनसे प्रस्फुटित स्वर सुन कर लोग उन तक पहुंच सकें। निरोना के शिल्पकार बताते हैं कि पहले गांवों में तांबे की बनी ये घंटियाँ पशुओं के गले में बांधी जाती थी तथा इनकों अलग-अलग स्वर दिया जाता था ताकि मालिक घंटी की आवाज सुन कर अपने पशु को पहचान सकें। गोधूलि वेला में जब पशु घर लौटते तो गांव का वातावरण स्वरमय हो जाता था। शिल्पकार बताते हैं कि इसके लिये तांबे को स्वर के पीट कर उसे सुरीला बनाया जाता है।
तंगैया व लाला पंडित आकर्षण : बिहार के लाला पंडित व तमिलनाडु के तंगैया व मोलेला के भग्गालाल व धनराज के बनाये वृहद आकार के मृण प्रतिमाएं उत्सव में आगंतुकों का मन मोह रही है। तमिलनाडु के माटी शिल्पी आर. तंगैया व उनके गुरू एम. रंगस्वामी की बनाई कृतियां लोगों को लुभा रही हैं। इनमें उनके द्वारा सृजित मत्स्य कन्या जहां कलात्मक दृष्टि से उत्कृष्ट हैं वहीं देवों की प्रतिमाओं में गुरू चेले की शिल्प कलात्मक रूप से उभर कर सामने आया है। बिहार के लाल पंडित ने उत्सव के दौरान ही श्रीकृष्ण की प्रतिमा का सृजन किया वहीं इनके द्वारा बनाया गरूड़ बेजोड़ नजर आता है।