तीन दिवसीय जिनबिम्ब प्रतिष्ठा महोत्सव शुरू
उदयपुर। अन्तर्मना प्रसन्न सागर महाराज ने कहा कि संतान निर्माण में पहला कार्य मां, दूसरा पिता और तीसरा कार्य गुरु का होता है। मां सात साल, पिता साठ साल और गुरु सात जन्मों तक सीख देता है।
वे बुधवार को सर्वऋतु विलास स्थित जैन मंदिर में अक्षय तृतीया पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि माँ ने जन्म दिया, पिता ने जमीर दिया और गुरु ने जीवन दिया। मां ने बचपन संभाला, पिता ने जवानी और गुरु ने मौत और बुढ़ापे को संभाला।
संतों और मुनिजनों का काम जीवन में यातायात पुलिस की तरह है। यातायात को नियंत्रित करना यातायात पुलिस का काम है उसी तरह समाज में उत्पन्न गतिरोधों को दूर करने का काम संतों का है।
उन्होंने कहा कि यदि जिंदगी हंसती हुई आयी है तो यह पूण्य कर्मों का फल है। यदि दुख है तो समझो कि पुण्य करने का समय आ गया है। मोक्ष की यात्रा तो खुद के पैरों पर ही करनी पड़ेगी। दूसरों के सहारे तो शमशान ही जा सकेंगे। दूसरों की मदद से पारसनाथ टोंक तक पहुंच सकते हैं लेकिन पारसनाथ तक पहुंचने के लिए खुद को पुरुषार्थ करना पड़ेगा।
आज संघस्थ सौम्यमूर्ति मुनि पीयूष सागर की छठीं दीक्षा जयंती मनाई गई।
इन्हें सांसारिक जीवन में ही वैराग्य के संस्कार पूज्य पिताजी, दादाजी और दादीजी से मिले। सभी ने जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर जीवन सार्थक किया। मुनि पीयूष सागर अनुशासित, विनम्र हैं। गुरु के प्रति असीम श्रद्धा और सम्मान रखते हैं। इनमें प्रमाद और आलस्य बिल्कुल नही है। गुरु की प्रभावना के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
इससे पूर्व तीन दिवसीय वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव के तहत ध्वजारोहण, आचार्य आदि कार्यक्रम हुए। मुनि पीयूष सागर महाराज ने भी उदबोधन दिया।