उदयपुर। नगर निगम प्रांगण में चल रहे भारतीय आर्ट हैंडीक्राफ्ट एंड हैंडलूम एक्सपो में रजवाड़ी फर्नीचर राजपूताना संस्कृति का परिचय करा रहे हैं।
प्रदर्शनी संयोजक त्रिभुवन चैबीसा ने बताया कि 500 साल पुरानी राजस्थानी रजवाड़ी संस्कृति की डिजाइन के अनुसार ये फर्नीचर सागवान और शिशम की लकड़ी से तैयार किये गये हैं। सदियों से चली आ रही मेवाड़ी रजवाडी परंपरा के अनुसार ही तैयार किये जाते है। इनमें डाइनिंग सेट झुला, जोधपुरी सोफा, डबल बेड, झरोखा दरवाजा नुमा आर्ट की डाइनिंग टेबल, ब्रिटिश कालीन सोफा, पुरानी रजवाडी हवेलियो में रखे जाने वाले रजवाड़ी संस्कृति के अनेक फर्नीचर यहां उपलब्ध है।
उन्होंने बताया कि पूर्व में रजवाड़ी परंपरा के फर्नीचर हवेलियों और महलों तक ही सीमित होते थे लेकिन अब आम आदमी की पहुंच में भी आ गए हैं। वर्तमान में राजस्थान के जोधपुर में इन्हें बनाने की बड़ी फैक्ट्री है। जोधपुर से ही यह फर्नीचर यहंा बिकने आए हैं। यह फर्नीचर बाजारों में मिलने वाले शोरूम से बिल्कुल ही अलग है। झूला जिसकी कीमत 55000 रूपयें तक है। यह बिल्कुल रजवाड़ी परंपरा के अनुसार बनाया गया है। इसकी खासियत यह है कि यह झूला फोल्डिंग सिस्टम से बना हुआ है। 52000 की कीमत वाला रजवाड़ी सोफा और रेामन सोफा भी यहां उपलब्ध है, जो कि आसानी से बाजारों में नहीं मिलते। सागवान और शीशम की लकड़ी से बनाए गए और भी आइटमो में बुक स्टैंड. डेसिंग टेबल, सर्विस टेबल, बीयर बार स्टैंड भी बिकने के लिए आए हैं।
इनके अलावा इस मेले में कारपेट भी पारंपरिक डिजाइनों में उपलब्ध है। यूपी में बधोही नामक जगह है जहां पर राजा महाराजाओं के जमाने से चले आ रहे हैं कारपेट बनते है। यहां पर मुगल, कश्मीरी, ईरानी संस्कृति से जुड़े सिल्क और वूलन के कारपेट बनते हैं जो यहां इस मेले में लोगों द्वारा खूब पसंद किए जा रहे हैं। यह कारपेट भी मौसम के अनुसार होते हैं। वूलन और सिल्क के कारपेट सर्दी में जहां गर्म रहते हैं गर्मी में ठंडक प्रदान करते हैं। समय के साथ-साथ कारपेट की दुनिया में भी बदलाव आया लेकिन पारंपरिक डिजाइन नहीं बदली। अभी यहां पर ऐसी दरिया भी बिकने आई है जिन्हे आधुनिक बनाकर उसे सेगी कारपेट का नाम दिया गया है। उस दरी के ऊपर सिल्क धागे से घास नुमा ऐसी डिजाइन बनाई है जिससे दरी आकर्षक लगती है और वह सर्दी मे गर्म और गर्मी मे ठण्डक का एहसास कराते हैं।