Udaipur. डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि हिन्दू संकुचित शब्द नहीं है। पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित व्यक्ति विश्व के अन्य संप्रदायों से दृष्टि बनाकर हिन्दू को भी संप्रदाय मानते है तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल है, क्योंकि यह तो एक बड़ा मंच है जिस पर कई संप्रदाय खड़े हैं।
वे विवेकानन्द सार्द्धशती द्वारा विद्या निकेतन में शनिवार को आयोजित सामाजिक सद्भावना बैठक को संबोधित कर रहे थे। उन्होंाने कहा कि पराधीनता के काल में प्राण रक्षा के लिये जातिगत व्यवस्था बनाकर कई प्रकार की व्यवस्थाएं बनाई गई। जो आज के परिपेक्ष्य में कुरीतियों के रूप में दिखाई देती है। आवश्यकता इस बात है कि स्वाधीनता के पश्चात् प्राचीन जंजीरों की आवश्यकता नहीं हैं इसलिए कुरीतियों रूपी जंजीरों को तोड़कर समाज में एक्य भाव देते हुए आगे बढ़ना चाहिये। जैसे शरीर के विभिन्न अंगों में विभिन्न्ता होते हुए भी उनमें होने वाला रक्त संचार शरीर के ऐक्य भाव को बनाए रखता है। उसी से हमारा राष्ट्रदेव खड़ा होगा।
हजार बाहरसों वर्ष के संघर्षकाल में प्राण रक्षा में बहुमूल्य संस्कार छूट गए जिन्हें पुनः संजोना होगा। बैठक की भूमिका डॉ. भगवती प्रकाश ने रखी व विभिन्न समाजों के पधारे हुए प्रतिनिधियों ने अपने समाज में किये जा रहे नवाचारों को व्यक्त किया। 76 समाजों के 215 लोगों ने बैठक में भाग लिया। संचालन रमेश शुक्ल ने किया व एकल गीत डॉ. कौशल शर्मा ने गाया। यह जानकारी सार्द्धशती के सहसंयोजक जितेश श्रीमाली ने दी।