उदयपुर। व्यग्रता एक मानसिक व्याधि है जो मानव को अशान्त और उद्वेलित बना कर रख देती है। आज यह व्याधि महामारी की तरह पूरे विश्व में फैलती जा रही है। उक्त विचार श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने पंचायती नोहरे में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि मानव मस्तिष्क कल्पनाओं का समुद्र है। कल्पनाओं की लहरें उसमें निरन्तर उठती रहती है। यह मानव की योग्यता पर आधारित है कि वह कौनसी कल्पना को किस पकार साकार करें? चिन्तन करने से व्यक्ति को हेय ज्ञेय और उपादेय की दिशा मिलती है। श्रेष्ठ और सफल महापुरुषों का अनुभव भी इसमें सहायक बन सकता है। बहुमुखी और तल स्पर्शी चिन्तन के द्वारा जो दिशा मिले यदि मानव उस दिशा में ही विवेक पूर्वक सक्रिय हो तो सफलता श्रेठता और आनन्द उसे निश्चित रूप से प्राप्त होंगे, लेकिन मानव के पास आज चिन्तन और परामर्श के लिये समय नही हैं वह शीघ्रता पूर्वक हड़बड़ी में जो मन में आया कार्य कर लेना चाहता है। यही वह व्यग्रता है जो उसे असफल, अशान्त और उद्वेलित बना देती है। श्रमण मुनि ने भी सभा को सम्बोधित किया। संचालन श्रावक संघ मंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया।
इन्द्रिय जय तप कल से
श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ मालदास स्ट्रीट के तत्वावधान में चातुर्मास की नई तप की श्रृंखला में मुनिराज मुनिरत्न सागर के शुभ सानिध्य में इंद्रिय जय तप 31 जुलाई से आरम्भ होगा जो 25 दिन तक चलेगा। इस ताप में भी लगभग 50 श्रावक-श्राविकाओं के भाग लेने की संभावना है। गुरु भगवंत ने इन्द्रिय कषाय जय तप की आराधना धूमधाम से कराई जिसमें भी लगभग 40 तपस्वियों ने भाग लेकर तप का आनंद लिया। तप की अनुमोदन के लिए कई भाग्यशालियों ने अपने नाम एकासन, आयम्बिल, परिमूढ के लिए लिखवाए। सम्पूर्ण आराधना के पश्चात् तपस्वियों का बहुमान किया जाएगा। तप की व्यवस्था चातुर्मास संयोजक गजेन्द्र नाहटा ने निर्धारित की। यह जानकारी चातुर्मास सहसंयोजक अरुण कुमार बडा़ला ने दी।