आचार्य तुलसी वरिष्ठ नागरिक संस्थान की कार्यशाला
प्रज्ञा दिवस के रूप में 25 को मनेगा आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म दिवस
उदयपुर। हालांकि जैन समाज में किसी का भी परिग्रह करना निषेध है लेकिन चिंतन और विचारों का परिग्रह सबसे नुकसानदायक है। समस्याएं होती है सम्बन्धों से अपेक्षाएं रखने से। अगर आप अपने सम्बन्धों से अपेक्षा रखना छोड़ देंगे तो फिर आपको कोई समस्या ही नहीं होगी। निश्चय ही आप सबसे सुखी इंसान होंगे।
ये विचार सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय में प्रबंध अध्ययन संकाय के निदेशक पी. के. जैन ने व्यक्त किए। वे श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से आचार्य तुलसी वरिष्ठ नागरिक संस्थान के तत्वावधान में रविवार को तेरापंथ भवन में पारिवारिक और सामाजिक दायित्व विषयक आयोजित कार्यशाला को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वो पीढ़ी सबसे अच्छी है जो जीवन के हर क्षण का आनंद लेना जानती है, चाहे उम्र कोई भी हो। बचपन, युवावस्था, अधेड़ावस्था या बुढ़ापा। आनंद लेने की कला आनी चाहिए। वरिष्ठजनों ने अपने समय में नए घोंसले बनाए होंगे वहीं आज उनकी नई पीढ़ी भी नए घोंसले बना रही होगी। आप सोचते होंगे, जैसा आपने सोचा था, वैसा नहीं है लेकिन मानसिक, शारीरिक संतुलन बनाकर रखते हुए आपको स्वयं सोचना है कि आपको क्या चाहिए। जीवन का अर्थ तभी बनता है जब हम उसे खोजते हैं।
उन्होंने संस्थान की कार्यक्षमता की सराहना करते हुए कहा कि प्रतिदिन जितने संगठन बनते हैं, उससे कहीं अधिक बिगड़ते हैं। आज की इस समाज व्यवस्था में संगठन को बड़ा करना, फिर उसे चलाना, खास तौर से उसे जीवंतता से चलाना, समर्पण के साथ चलाना ही सफलता है। वरिष्ठजनों ने समाज को बहुत कुछ दिया है। मैं गौरवान्वित हूं उनके बीच अपने को पाकर कि मुझे कुछ बोलने का अवसर मिला।
चातुर्मास पूर्व चार दिन के लिए प्रवासरत साध्वी कनकश्रीजी ने कहा कि धर्म आराधना करें। इसका ध्यान बचपन से अपने बच्चों से रखें। बच्चों में बचपन से धार्मिक आर्थिक संस्कार डालें ताकि वह संस्कारित होकर परिवार, समाज और देश का नाम रोशन करें। बुढ़ापा आए लेकिन सताए नहीं, ऐसी व्यवस्था आपको आरंभ से करनी चाहिए। भगवान और अध्यात्म कभी बूढ़े नहीं होते। वरिष्ठ नागरिकों का कर्तव्य है कि बच्चों को ज्ञान दें। आप जैसा बोलेंगे, व्यवहार करेंगे आपके बच्चे भी आपको देखकर वही सीखेंगे। बच्चों में अच्छी आदतें डालें। वरिष्ठजनों का यह दायित्व है। आपके मुंह में क्या जाता है, उसे कोई नहीं देखता लेकिन आपके मुंह से क्या निकलता है, उसे सारा जमाना देखता है इसलिए समाज के साथ संघीय दायित्व भी जरूरी है।
साध्वी मधुलता ने कहा कि वरिष्ठजनों ने पारिवारिक दायित्व तो जीवन भर निभाया। समाज में रहते हुए सामाजिक दायित्व भी खूब निभाया लेकिन संघ के प्रति उनका दायित्व बनता है। संघीय दायित्व भी है। बच्चों को इस काबिल बनाया कि अब वे स्वयं अपने पांवों पर खड़े हैं। साध्वी श्री ने ठीक दो माह पूर्व से शहर सहित आसपास के उपनगरों, कॉलोनियों में भ्रमण किया और प्रयास किया कि समाज के प्रत्येक परिवार से मिल सकें। आचार्य तुलसी ने कहा था कि व्यक्ति व्यस्त नहीं बल्कि अस्त-व्यस्त है। गुरुओं के सान्निध्य का प्रयास करें। समाज से ही संघ और संघ से ही समाज है। साध्वीवृंदों वीणा कुमारी, साध्वी मधुलेखा, साध्वी समितिप्रभा ने साध्वी कनकश्रीजी की स्वरचित गीतिका भी प्रस्तुत की।
स्वागत भाषण देते हुए सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि सामाजिक, पारिवारिक और संघ के प्रति वरिष्ठजनों के दायित्व जानने और समझने के लिए ही आज यह कार्यशाला रखी गई। उन्होंने साध्वीवृंदों का स्वागत करते हुए कहा कि समाज को बराबर वरिष्ठजनों का मार्गदर्शन मिलता है। कार्यशाला मासिक के बाद साप्ताहिक और फिर नियमित हो, ऐसा हमारा प्रयास है। चातुर्मास में साध्वी श्री कनकश्रीजी सहित सभी का सान्निध्य मिलेगा। उन्होंने समाज के अन्य कार्यक्रमों की जानकारी देते हुए बताया कि 24 जून को आध्यात्मिक प्रशिक्षण कार्यशाला तथा 25 जून को आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म दिवस प्रज्ञा दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दौरान लाडनूं से आए मानव सेवा समिति के अध्यक्ष मानमल नाहर का भी अभिनंदन किया गया।
इससे पूर्व नमस्कार महामंत्र से कार्यक्रम का आगाज साध्वी कनकश्रीजी ने किया। शताब्दी गीत सरिता कोठारी, मंजू फत्तावत एवं केसर तोतावत ने प्रस्तुत किया। पिछली प्रतियोगिता के विजेता श्रीमती आजाद तलेसरा, शकुंतला पोरवाल, चन्द्रकांता वैद एवं केसर तोतावत को पारितोषिक प्रदान कर पुरस्कृत किया गया। संचालन पारसमल कोठारी ने किया वहीं आभार अर्जुन खोखावत ने जताया। अतिथि स्वागत की रस्म मीडिया प्रभारी दीपक सिंघवी, सुभाष सोनी, चंपालाल चपलोत, मोतीलाल पोरवाल, जीवनसिंह पोखरना आदि ने अदा की।