उदयपुर। श्रमण संघीय चतुर्थ पट्टधर आचार्य सम्राट डा. श्री शिवमुनि जी महाराज ने कहा कि बहुत पुण्य के बाद यह मनुष्य का जीवन मिला हैं। इसे व्यर्थ की निंदा, चुगली, ईष्र्या और किसी की बुराई में अपना जीवन बर्बाद मत करिये। हंस जैसा जीवन जीएं और मोती को चुनें।
वे आज आयड़ स्थित ऋषभ भवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए डक्त बात कहीं। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार मकान की नींव कमजोर है वह मकान कभी ज्यादा दिन खड़ा नहीं रह सकता है। ठीक वैसे ही संसार के सम्बन्ध भी कमजोर हैं। धन, स्त्री और जमीन के लिए कितनी लड़ाईयां हुई है और हो रही है। भाई-भाई आपस में लड़ते है, बाप-बेटा लड़ते है। स्वार्थ से भरा हुआ है यह संसार। काम न होने तक आपकी पूजा होती है। काम निकला नहीं की आप कौन और मैं कौन वाली हो जाती है।
उन्होंने कहा कि यह जीवन ऐसे ही व्यर्थ खो रहे है सिर्फ श्वांस लेने का नाम तो जिंदगी नहीं। सुबह होती है, शाम होती है जिंदगी यूं ही तमाम होती हैं। यह काम भोग क्षण भर का सुख देते है और चिरकाल तक दुःख देने वाले हैं। दुःख की लम्बी कतार लग जाती है और यह काम भोग मोक्ष जाने वाले जीव के विरोधी हैं। पाँच इन्द्रियों के काम भोग अनर्थो की खान है । पाँच इन्द्रियों के विषय कितने भी भोगों लेकिन तृप्ति ही नहीं होती हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि बचपन, जवानी और बुढ़ापा यह तीन अवस्था मनुष्य जीवन की है। सुबह का उगता हुआ सूरज सबको प्यारा लगता है। बचपन भी ऐसे ही होता है, सबको प्यारा लगता हैं। हर कोई गौद में उठाता है और लाड प्यार करता है। दोपहर का सूरज हम आंख मिलाकर देख नहीं पाते हैं। आँखे चुभती जाती हैं और जवानी भी दोपहर के सूरज की तरह हैं। जवानी में जोश और नशा होता है। किसी की परवाह नहीं करते है। धन व पद का नशा छाया रहता है। किसी को कुछ नहीं समझता हैं और खुद जो करता है वहीं सही लगता है।
ढ़लता सूरज बुढ़ापे का प्रतिक हैं। सबके जीवन में भी संध्या की वेला आती है तो कुछ कर नहीं सकते हैं। परायों के आश्रित जीवन हो जाता है बस पुरानी यादों को स्मरण करके आँसू बहाता रहता है। ऐसा यह मानव जीवन में कुछ लाभ कमाया तो सार्थक है यह मनुष्य जीवन नहीं तो रोज लाखों लोग इस धरती पर जन्म लेते है